श्री अमृतेश्वर महादेव मंदिर, जो मोहाली के सेक्टर 89 में स्थित है, आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक गहराई का एक प्रेरणादायक केंद्र बन चुका है। इस मंदिर की स्थापना का श्रेय विश्व परमार्थ फाउंडेशन को जाता है, जिसके मार्गदर्शक स्वामी श्री संपूर्णानंद ब्रह्मचारी जी महाराज हैं। सात वर्ष की अल्पायु से ही आध्यात्मिक साधना के पथ पर अग्रसर होने वाले संपूर्णानंद ब्रह्मचारी जी ने अपने जीवन के सभी चरणों में निस्वार्थ सेवा, तपस्या और सामाजिक सुधार को महत्व दिया है. उनकी प्रेरणा से सुसज्जित इस मंदिर ने न केवल एक धार्मिक स्थल बनकर शांति प्रदान की है, बल्कि सामुदायिक कल्याण और युवा-उन्मुख कार्यक्रमों के माध्यम से आधुनिक जीवन की भागदौड़ से जूझ रहे लोगों के लिए आश्रय की भूमिका भी अदा की है।

प्रमुख निष्कर्ष
- आध्यात्मिक गहराई के साथ संपूर्णानंद ब्रह्मचारी जी का जीवन मार्गदर्शन।
- मंदिर की वैदिक प्राणप्रतिष्ठा विधि एवं दैनिक पंचामृत पूजा।
- युवाओं के लिए नशा मुक्ति अभियान और भारतीय संस्कारों पर आधारित शैक्षिक संगोष्ठी।
- क्षेत्र के अन्य आध्यात्मिक केंद्रों एवं सामुदायिक सुविधाओं के साथ सामंजस्य।
- आगंतुकों के लिए शांति एवं संस्कार का समन्वयित अनुभव।
मंदिर का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक परिवेश
श्री अमृतेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण विश्व परमार्थ फाउंडेशन द्वारा मई 2025 में सम्पन्न देव प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर हुआ1. इस पावन आयोजन के दौरान शिवलिंग की स्थापना के समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए पंचामृत से अभिषेक किया गया और शास्त्रीय विधाओं का निर्वहन किया गया, जिसने इस मंदिर को आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान की। मंदिर का नाम “अमृतेश्वर” इस भगवान शिव के अमृत स्वरूप का संकेत देता है, जो भक्तों को अनन्त जीवन के आध्यात्मिक स्वाद का अनुभव कराता है।
संपूर्णानंद ब्रह्मचारी जी ने मंदिर परिसर की रूपरेखा और पुजारियों के प्रशिक्षण में संपूर्ण वैदिक पद्धतियों का समावेश किया, जिससे अतीत की परंपराएँ और आधुनिक समय की आवश्यकताएँ सहजता से जुड़ गईं। महोत्सव के बाद से ही मंदिर मोहाली में एक शांत आश्रय स्थल के रूप में स्वरूप ग्रहण कर चुका है, जहाँ प्रतिदिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता रहता है।

वास्तुकला एवं पूजा पद्धति
श्री अमृतेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला में स्थानीय शैली और प्राचीन हिन्दू मंदिर निर्माण के तत्वों का उत्कृष्ठ संगम दिखाई देता है। मंदिर का मुख्य मण्डप चौकोर पिलरों द्वारा समर्थित है, जिनपर हेमाडपंती स्थापत्य की झलक मिलती है। गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को एक विशुद्ध वेदी पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्थापित किया गया है, जो वैदिक शास्त्रों के अनुसार उत्तम माना जाता है।
पूजा पद्धति में प्रतिदिन सुबह सात बजे से पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल) से अभिषेक होता है, एवं बेलपत्र, चंदन और रोली से शिवलिंग की आरती की जाती है। दोपहर और रात्रि में प्रसाद भंडारा का आयोजन श्रद्धालुओं में किया जाता है, जिससे यह मंदिर सामाजिक समरसता का भी केंद्र बनता है2. इन विधि-विधान ने मंदिर को न केवल धार्मिक प्रथा बल्कि सामुदायिक सेवा का भी गोचर स्थल बना दिया है।